Wednesday, April 11, 2007

Fan to build Mohammad Rafi memorial in Birmingham



London, April 3 (IANS) Singer Mohammad Rafi will soon be immortalised in the city centre in Birmingham as an architect fan is building a shrine with the idea of making the late singer a saint.Tasawar Bashir, 39, is a former film producer and is also the festival curator for the Mirage Film Festival 2007 in Birmingham. He is keen to build a modern day memorial to one of the stalwarts of Indian film industry.Rafi was born at Kotla Sultan Singh, near Amritsar, on Dec 24, 1924, and died on July 31, 1980, leaving behind several haunting melodies in various Indian languages, including in Marathi and Telugu.Reports from Birmingham say that the Indian high commission is supporting the project that is set to first appear at Birmingham's Festival of Extreme Building in the summer.Bashir, a student at the Birmingham Institute of Art and Design, told the Birmingham Evening Mail: "Millions of people across India and the world loved to listen to Rafi ... so when he died Bombay (Mumbai) hosted the biggest ever procession for a Bollywood personality."He was a cross between Frank Sinatra and Engelbert Humperdinck and I think he deserves to be a saint."There is no official way of making someone a saint in Hindu or Muslim religions but if I can get enough people to see the shrine then he could be immortalised."The project is expected to cost over 20,000 pounds and will involve building the structure on Fazeley Street in the Birmingham city centre by June

Thursday, April 5, 2007

Rafi Smriti

It is matter of great pleasure for millions of rafi fans that a very useful article on Mohammad rafi and Kishore Kumar has apeared on Apnakona.We want to inform rafifans that a fans club has been started in Delhi. Any body want to join this club can contact us on rafismriti@gmail.com

Mohammad Rafi Versus Kishor Kumar

Thursday, April 5, 2007

रफी बनाम किशोर
किशोर दा और रफी साब में कौन बड़ा? आज इस बात को लेकर अक्सर बहस होती है । लेकिन ये ऐसा विषय है जिसमें सीधे तौर पर किसी का जीत पाना मुश्किल ही नही नामुमकिन है। यूनीवार्ता के तेज तर्रार पत्रकार विनोद विप्लव इस विषय पर कम से कम एक दशक से काम कर रहे हैं । फिल्मों में गहरी रुचि और विषय की परख का अंदाजा इनकी लेखनी से आप खुद लगा लेंगे । आज वो संगीत की दुनिया को दोनो महारथियों की तुलना कर रहे हैं ।मोहम्मद रफी और किशोर कुमार में से कोई भी हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी आवाज का जादू बरकरार है और तब तक बरकरार रहेगा जब तक इंसान के पास श्रवण क्षमता रहेगी। मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज के जरिये वर्षों तक संगीत प्रेमियों पर राज किया जबकि किशोर कुमार ने गायन के साथ साथ अभिनय कला एवं निर्देशन के क्षेत्र में भी अपनी छाप छोड़ी। ऐसे में दोनों के बीच किसी तरह की तुलना आसान नहीं है, लेकिन मै इसका दुस्साहस कर रहा हूं। किशोर कुमार भारतीय फिल्म उद्योग के अत्यन्त प्रतिभावान और प्रभावशाली शख्सियत थे। वह ऐसे जीनियस थे जिनसे फिल्म निर्माण का कोई भी क्षेत्रा अछूता नहीं था। चाहे गायन हो, संगीत निर्देशन हो, फिल्म निर्दशन हो, फिल्म निर्माण हो अथवा अभिनय हो हर क्षेत्रा में अपनी नहीं हैं। गीतों की संख्या के आधार पर निश्चित तौर पर किशोर कुमार से मोहम्मद रफी काफी आगे हैं, लेकिन आज के समय में, खास तौर पर युवा पीढ़ी में किशोर दा के गाए गए गीत रफी साहब के गाये हुए गीतों से कहीं अधिक लोकप्रिय है, लेकिन अगर दोनों के गाए गीतों के शब्दों या शायरी की खूबसूरती पर नजर डालें तो भी रफी साहब बड़े नजर आएंगे। इसके अलावा जहां तक गीतों में भावनाओं और संवेदनाओं का सवाल है रफी साहब न केवल किशोर दा से, बल्कि फिल्मी दुनिया के हर गायकों से अव्वल रहेगें।
केवल एक ही भाव में हो सकता है कि किशोर कुमार रफी को पछाड़ दें और वह है कॉमेडी। कुछ गाने जैसे `ये रात ये मौसम´ और `देखा एक ख्वाब को तो´ को छोड़ दिया जाए तो किशोर कुमार खालिस रोमांटिक गीतों में ज्यादा प्रभावी नहीं लगते हैं और दर्द भरे गीतों में भी किशोर का `दुखी मन मेरे´ एक अपवाद ही लगता है। शास्त्रीय धुनों में किशोर कुमार के ज्यादा गीत नहीं सुने गए हैं। आज कर्णभेदी शोर वाले अश्लील गीत ही फिल्म संगीत की पहचान बने गये हैं। अगर आप कुछ मटकती हुई नंगी कमर को किसी भी कानफाडू गाने के साथ मिला दें तो आपका वीडियो हिट हो जाएगा।गीतों को रचने के नाम पर पुराने गीतों की नकल हो रही है। आज ए- आर- रहमान जैसे रीमिक्स कलाकार को ही बड़े से बड़े आयोजनों और बड़ी से बड़ी फिल्मों के लिये संगीत बनाने की जिम्मेदारी सौपी जाती है जबकि इनसे कहीं बेहतर कलाकार जैसे नौशाद साहब या खैय्याम जैसे पुराने एवं मंजे हुए संगीतकारों को कोई पूछता नहीं है, वैसे समय में रफी साहब के सुरीले और कर्णप्रिय गानों को तो छोडि़ये, किशोर दा के अर्थपूर्ण और मधुकर गीतों को भी पसन्द करने वाले कम ही लोग बचे हैं। हालांकि उनके कॉमेडी और तेज गति वाले गानों की मांग युवा पीढ़ी में आज भी बनी हुई है। रफी साहब की सबसे बड़ी खूबी गीतों को गाने की उनकी विशिष्ट शैली थी, जबकि किशोर दा के गीतों की खूबी उनके गाने की सामान्य शैली थी। रफी के गाये हुए ज्यादातर गानों को सुनकर ऐसा लगता है कि वह गीत कोई विशिष्ट गायक गा रहा है। इसी तरह की विशिष्टता के- एल- सहगल की थी।किशोर कुमार के गाये हुए ज्यादातर गानों को सुनकर ऐसा लगता है कि हमारे बीच का ही कोई व्यक्ति उसे गा रहा है। यही किशोर दा की लोकप्रियता का राज है। किशोर कुमार की सबसे बड़ी खासियत यही थी कि उन्होंने कठिन से कठिन गीतों को भी इस तरह से गाया कि सुनने वालों को ऐसा लगे कि वह भी यह गीत गा सकता है। दूसरी तरफ रफी साहब के सामान्य गीतों को गाना भी काफी मुश्किल होता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान यह देखा गया है कि गीत-संगीत के कार्यक्रमों एवं प्रतियोगिताओं में ज्यादातर गायक किशोर कुमार के गाये हुए गीतों को गाना अधिक पसन्द करते हैं।

संगीत की महफिलों में नये कलाकारों को रफी के गीत गाने में मुश्किल होती है। के- एल- सहगल, तलत महमूद, हेमन्त कुमार और मुकेश के भावपूर्ण गीतों को गाना तो और भी मुश्किल होता है और इसलिये उनके गीतों की नकल करने वाले कम ही गायक पैदा हुए। इन गायकों के गीतों को रीमिक्स नहीं किये जाने का कारण यह भी है कि उन गीतों की नकल हो ही नहीं सकती। इसी कारण से रफी के रीमिक्स किये गये गीतों की संख्या भी कम है। कल्पना की जा सकती है कि `ओ दुनिया के रखवाले´, `मधुबन में राधिका नाचे रे´, `देखी जमाने की यारी´ और `जाने क्या ढूंढती रहती है ये आंखें मुझमें´ जैसे गीतों की रीमिक्स बनाने की कोशिश किस कदर हास्यास्पद एवं भद्दी लगेगी। यहां तक कि `पर्दा है पर्दा´, `ओ मेरी महबूबा´ और `आ आ आ जा´ जैसे रफी के गाये हुए गैर शास्त्राीय गीतों को भी रीमिक्स करने के लिये अच्छे गायक नहीं मिलते। पचास और साठ के दशक के उनके अधिकांश गीतों को रीमिक्स नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर किशोर कुमार के गाये `रूप तेरा मस्ताना´ वाले गीत की रीमिक्स अगर असल गाने से बेहतर नहीं तो उसके बराबर तो थी ही। यह रीमिक्स काफी हिट भी हुई। यह सही है कि इस गीत का संगीत देने वाले आर- डी- बर्मन अत्यन्त प्रतिभाशाली थे और उन्होंने फिल्म संगीत को एक नयी दिशा दी। लेकिन उनकी प्रतिभा उनके पिता एस- डी- बर्मन से सुर की मिठास के मामले में आधी भी नहीं है। फिर भी लोग एस- डी- बर्मन को लगभग भूल ही गए है, क्योंकि `ये दुनिया अगर मिल भी जाए´, और `जलते हैं जिसके लिए´ जैसे उनके गीतों को रीमिक्स नहीं किया जा सकता।
रफी के गाने संगीत या रिद्म के अलावा आवाज की जादूगरी पर आधारित थे। अब हम वही आवाज और प्रभाव दोबारा पैदा नहीं कर सकते। रफी के ज्यादातर गीतों में बेहतरीन गायकी, अद्भुत लयबद्धता, जटिलता और अभिनय की कला का समावेश था। खुद किशोर कुमार ने कहा था, ``रफी साहब एक महान गायक हैं। जिस श्रेष्ठता के साथ उन्होंने कुछ दशकों तक फिल्म जगत में राज किया उस तरह से कोई दूसरा नहीं कर सकता है।´´ रफी के गीतों को गाना मुश्किल इसीलिए है क्योंकि रफी में विस्तृत लयबद्धता का गुण था। रफी ने अपनी इस क्षमता का भरपूर प्रयोग किया था। इसके अलावा उन्होंने अपने गीतों में अपनी आत्मा भी डाल दी थी। नौशाद के अनुसार रफी ही अपने सबसे बड़े आलोचक थे। कई बार वे उनसे (नौशाद साहब से) कहा करते थे कि वह गाने से संतुष्ट नहीं हैं। रफी साहब गीत की रिकार्डिंग को `ओके´ कर दिये जाने के बाद भी वह उस गाने को दोबारा गाना चाहते थे और उन्होंने कई गाने दोबारा गाए। रफी साहब को कुदरत ने ऐसी नियामत बख्शी कि वह अपनी आवाज को बखूबी उसी तरह ढालते थे जिसके लिए वह गाना गा रहे होते थे। यह एक ऐसी कला थी जो उनसे बेहतर कोई नहीं जानता था। आप सुनकर बता सकते थे कि गाना देव आनन्द, दिलीप कुमार, धर्मेंन्द्र, शम्मी कपूर या जॉनी वॉकर के लिए है। कोई भी गायक जो अपने आप में ईमानदार है वह स्टेज पर रफी के गाये गीत गाने से पहले दो बार जरूर सोचेगा। उस भाव, लय और परिपक्वता की हूबहू नकल असंभव है। आज कितने ऐसे गायक हैं जो रफी की आवाज की उत्कृष्टता और सम्पूर्णता के करीब भी आते हो। आज के एक प्रतिभाशाली संगीत समायोजक और अरेंजर का कहना है, ``रफी साहब के अधिकतर गानों को हम जैसे `नश्वर´ गाने के लायक नहीं है। हमें सिर्फ उन्हें सुनना चाहिए और उनका कृतज्ञ होना चाहिए।´´ -
विनोद विप्लव का यह आलेख साची प्रकाशन की जल्दी ही छपने वाली किताब - मेरी आवाज सुनो - में शामिल है।

Mohammad Rafi Versus Kishor Kumar

Thursday, April 5, 2007

रफी बनाम किशोर
किशोर दा और रफी साब में कौन बड़ा? आज इस बात को लेकर अक्सर बहस होती है । लेकिन ये ऐसा विषय है जिसमें सीधे तौर पर किसी का जीत पाना मुश्किल ही नही नामुमकिन है। यूनीवार्ता के तेज तर्रार पत्रकार विनोद विप्लव इस विषय पर कम से कम एक दशक से काम कर रहे हैं । फिल्मों में गहरी रुचि और विषय की परख का अंदाजा इनकी लेखनी से आप खुद लगा लेंगे । आज वो संगीत की दुनिया को दोनो महारथियों की तुलना कर रहे हैं ।मोहम्मद रफी और किशोर कुमार में से कोई भी हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी आवाज का जादू बरकरार है और तब तक बरकरार रहेगा जब तक इंसान के पास श्रवण क्षमता रहेगी। मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज के जरिये वर्षों तक संगीत प्रेमियों पर राज किया जबकि किशोर कुमार ने गायन के साथ साथ अभिनय कला एवं निर्देशन के क्षेत्र में भी अपनी छाप छोड़ी। ऐसे में दोनों के बीच किसी तरह की तुलना आसान नहीं है, लेकिन मै इसका दुस्साहस कर रहा हूं। किशोर कुमार भारतीय फिल्म उद्योग के अत्यन्त प्रतिभावान और प्रभावशाली शख्सियत थे। वह ऐसे जीनियस थे जिनसे फिल्म निर्माण का कोई भी क्षेत्रा अछूता नहीं था। चाहे गायन हो, संगीत निर्देशन हो, फिल्म निर्दशन हो, फिल्म निर्माण हो अथवा अभिनय हो हर क्षेत्रा में अपनी नहीं हैं। गीतों की संख्या के आधार पर निश्चित तौर पर किशोर कुमार से मोहम्मद रफी काफी आगे हैं, लेकिन आज के समय में, खास तौर पर युवा पीढ़ी में किशोर दा के गाए गए गीत रफी साहब के गाये हुए गीतों से कहीं अधिक लोकप्रिय है, लेकिन अगर दोनों के गाए गीतों के शब्दों या शायरी की खूबसूरती पर नजर डालें तो भी रफी साहब बड़े नजर आएंगे। इसके अलावा जहां तक गीतों में भावनाओं और संवेदनाओं का सवाल है रफी साहब न केवल किशोर दा से, बल्कि फिल्मी दुनिया के हर गायकों से अव्वल रहेगें।
केवल एक ही भाव में हो सकता है कि किशोर कुमार रफी को पछाड़ दें और वह है कॉमेडी। कुछ गाने जैसे `ये रात ये मौसम´ और `देखा एक ख्वाब को तो´ को छोड़ दिया जाए तो किशोर कुमार खालिस रोमांटिक गीतों में ज्यादा प्रभावी नहीं लगते हैं और दर्द भरे गीतों में भी किशोर का `दुखी मन मेरे´ एक अपवाद ही लगता है। शास्त्रीय धुनों में किशोर कुमार के ज्यादा गीत नहीं सुने गए हैं। आज कर्णभेदी शोर वाले अश्लील गीत ही फिल्म संगीत की पहचान बने गये हैं। अगर आप कुछ मटकती हुई नंगी कमर को किसी भी कानफाडू गाने के साथ मिला दें तो आपका वीडियो हिट हो जाएगा।गीतों को रचने के नाम पर पुराने गीतों की नकल हो रही है। आज ए- आर- रहमान जैसे रीमिक्स कलाकार को ही बड़े से बड़े आयोजनों और बड़ी से बड़ी फिल्मों के लिये संगीत बनाने की जिम्मेदारी सौपी जाती है जबकि इनसे कहीं बेहतर कलाकार जैसे नौशाद साहब या खैय्याम जैसे पुराने एवं मंजे हुए संगीतकारों को कोई पूछता नहीं है, वैसे समय में रफी साहब के सुरीले और कर्णप्रिय गानों को तो छोडि़ये, किशोर दा के अर्थपूर्ण और मधुकर गीतों को भी पसन्द करने वाले कम ही लोग बचे हैं। हालांकि उनके कॉमेडी और तेज गति वाले गानों की मांग युवा पीढ़ी में आज भी बनी हुई है। रफी साहब की सबसे बड़ी खूबी गीतों को गाने की उनकी विशिष्ट शैली थी, जबकि किशोर दा के गीतों की खूबी उनके गाने की सामान्य शैली थी। रफी के गाये हुए ज्यादातर गानों को सुनकर ऐसा लगता है कि वह गीत कोई विशिष्ट गायक गा रहा है। इसी तरह की विशिष्टता के- एल- सहगल की थी।किशोर कुमार के गाये हुए ज्यादातर गानों को सुनकर ऐसा लगता है कि हमारे बीच का ही कोई व्यक्ति उसे गा रहा है। यही किशोर दा की लोकप्रियता का राज है। किशोर कुमार की सबसे बड़ी खासियत यही थी कि उन्होंने कठिन से कठिन गीतों को भी इस तरह से गाया कि सुनने वालों को ऐसा लगे कि वह भी यह गीत गा सकता है। दूसरी तरफ रफी साहब के सामान्य गीतों को गाना भी काफी मुश्किल होता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान यह देखा गया है कि गीत-संगीत के कार्यक्रमों एवं प्रतियोगिताओं में ज्यादातर गायक किशोर कुमार के गाये हुए गीतों को गाना अधिक पसन्द करते हैं।

संगीत की महफिलों में नये कलाकारों को रफी के गीत गाने में मुश्किल होती है। के- एल- सहगल, तलत महमूद, हेमन्त कुमार और मुकेश के भावपूर्ण गीतों को गाना तो और भी मुश्किल होता है और इसलिये उनके गीतों की नकल करने वाले कम ही गायक पैदा हुए। इन गायकों के गीतों को रीमिक्स नहीं किये जाने का कारण यह भी है कि उन गीतों की नकल हो ही नहीं सकती। इसी कारण से रफी के रीमिक्स किये गये गीतों की संख्या भी कम है। कल्पना की जा सकती है कि `ओ दुनिया के रखवाले´, `मधुबन में राधिका नाचे रे´, `देखी जमाने की यारी´ और `जाने क्या ढूंढती रहती है ये आंखें मुझमें´ जैसे गीतों की रीमिक्स बनाने की कोशिश किस कदर हास्यास्पद एवं भद्दी लगेगी। यहां तक कि `पर्दा है पर्दा´, `ओ मेरी महबूबा´ और `आ आ आ जा´ जैसे रफी के गाये हुए गैर शास्त्राीय गीतों को भी रीमिक्स करने के लिये अच्छे गायक नहीं मिलते। पचास और साठ के दशक के उनके अधिकांश गीतों को रीमिक्स नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर किशोर कुमार के गाये `रूप तेरा मस्ताना´ वाले गीत की रीमिक्स अगर असल गाने से बेहतर नहीं तो उसके बराबर तो थी ही। यह रीमिक्स काफी हिट भी हुई। यह सही है कि इस गीत का संगीत देने वाले आर- डी- बर्मन अत्यन्त प्रतिभाशाली थे और उन्होंने फिल्म संगीत को एक नयी दिशा दी। लेकिन उनकी प्रतिभा उनके पिता एस- डी- बर्मन से सुर की मिठास के मामले में आधी भी नहीं है। फिर भी लोग एस- डी- बर्मन को लगभग भूल ही गए है, क्योंकि `ये दुनिया अगर मिल भी जाए´, और `जलते हैं जिसके लिए´ जैसे उनके गीतों को रीमिक्स नहीं किया जा सकता।
रफी के गाने संगीत या रिद्म के अलावा आवाज की जादूगरी पर आधारित थे। अब हम वही आवाज और प्रभाव दोबारा पैदा नहीं कर सकते। रफी के ज्यादातर गीतों में बेहतरीन गायकी, अद्भुत लयबद्धता, जटिलता और अभिनय की कला का समावेश था। खुद किशोर कुमार ने कहा था, ``रफी साहब एक महान गायक हैं। जिस श्रेष्ठता के साथ उन्होंने कुछ दशकों तक फिल्म जगत में राज किया उस तरह से कोई दूसरा नहीं कर सकता है।´´ रफी के गीतों को गाना मुश्किल इसीलिए है क्योंकि रफी में विस्तृत लयबद्धता का गुण था। रफी ने अपनी इस क्षमता का भरपूर प्रयोग किया था। इसके अलावा उन्होंने अपने गीतों में अपनी आत्मा भी डाल दी थी। नौशाद के अनुसार रफी ही अपने सबसे बड़े आलोचक थे। कई बार वे उनसे (नौशाद साहब से) कहा करते थे कि वह गाने से संतुष्ट नहीं हैं। रफी साहब गीत की रिकार्डिंग को `ओके´ कर दिये जाने के बाद भी वह उस गाने को दोबारा गाना चाहते थे और उन्होंने कई गाने दोबारा गाए। रफी साहब को कुदरत ने ऐसी नियामत बख्शी कि वह अपनी आवाज को बखूबी उसी तरह ढालते थे जिसके लिए वह गाना गा रहे होते थे। यह एक ऐसी कला थी जो उनसे बेहतर कोई नहीं जानता था। आप सुनकर बता सकते थे कि गाना देव आनन्द, दिलीप कुमार, धर्मेंन्द्र, शम्मी कपूर या जॉनी वॉकर के लिए है। कोई भी गायक जो अपने आप में ईमानदार है वह स्टेज पर रफी के गाये गीत गाने से पहले दो बार जरूर सोचेगा। उस भाव, लय और परिपक्वता की हूबहू नकल असंभव है। आज कितने ऐसे गायक हैं जो रफी की आवाज की उत्कृष्टता और सम्पूर्णता के करीब भी आते हो। आज के एक प्रतिभाशाली संगीत समायोजक और अरेंजर का कहना है, ``रफी साहब के अधिकतर गानों को हम जैसे `नश्वर´ गाने के लायक नहीं है। हमें सिर्फ उन्हें सुनना चाहिए और उनका कृतज्ञ होना चाहिए।´´ -
विनोद विप्लव का यह आलेख साची प्रकाशन की जल्दी ही छपने वाली किताब - मेरी आवाज सुनो - में शामिल है।

films on Naushad, Husnalal - Bhagat and other music legends of old days

नयी दिल्ली 05 अप््रैल .वार्ता. दे­ विदे­ के संगीत..प््रेमिया2 को संभवत. जल्द ही संगीतकार नौ­ाद अली तथ संतूर वादक पंडित ç­वकुमार ­मी तथा मुबारक बेगम ही नहीं. हिन्दी फिल्मा2 के लगभग बिसरा दिये गए संगीत..निर्दे­ा2 पंडित राम नाराय¦ तथा हुस्नलाल..भगतराम के भी जीवन एवं कला से रंबरं होने का मौका मिलेगा1 सूचना एवं प््रसार¦ मंत््रालय का फिल्म प््रभाग इन तमाम फिल्मी..गैर..फिल्मी हस्तिया2 पर केçन्\\त जीवनीपरक फिल्म2 बना रहा है1 भारतीय समाज के विभिन्न ष्टेत््रा2 एवं अनु­ासना2 से जुडी महान हस्तिया2 पर प््रस्तावित फिल्म क्ंृखला म2 दिवंगत राष्ट्रपति के.आर. नाराय¦न. 15वीं सदी म2 असम म2 जन्मे बहुआयामी प््रतिभा के धनी ­ंकरदेवा. सतगुरं राम çंसंह जी और भारतीय स्वतंत््रता संग््राम के एक प््रमुख अध्याय कूरा आंदोलन पर भी फिल्म2 निर्मा¦ाधीन है1 मंत््रालय की आज यहां जारी एक विग्यçप्त के अनुसार इस क्ंृखला म2 फिल्म प््रभाग महान समाजवादी चिंतक डा0 राम मनोहर लौहिया. फिल्म निर्मा¦ बी आर चोपडा संगीतग्य डागर बंधुआ2 तथा संगीतकार सलिम चौधरी पर फिल्में बना चुका है1 प््रभाग ने पिछले साल अप््रैल से दिसबर तक कुल 24 वृतचित््रा2. लु< कथा एवं वीडियो फिल्मा2 का निर्मा¦ कर चुका है और इनम2 से केवल दो फिल्म2 विभागीय परिधि से बाहर स्वतंत््र निर्माताआ2 से बनवायी गई है1 इसके अलावा इसी अवधि म2 प््रभाग ने 188 सूचना एवं ç­ष्टाप््रद फिल्मा2 को डीजिटल. 480 फिल्मा2 को .हाई डीफिनी­ल ट्रैक और 825 फिल्मा2 को डीवीडी ट्रैक पर स्थानांतरित भी किया है. जिससे उसे करीब 4/चार करोड रंपये क ी राजस्व प््राçप्त हुई है1