Sunday, October 5, 2008

Dilip Kumar - The greatest actor



दिलीप कुमार का सफ़र 

हिंदी फ़िल्मों के बेहतरीन और दिग्गज अभिनेताओं का अगर नाम लें तो बेशक़ दिलीप कुमार का नाम उस फ़ेहरिस्त में ज़रुर शामिल होगा. 11 दिसंबर 1922 को पेशावर में जन्मे यूसुफ़ खान ने 1940 के दशक में जब हिंदी फ़िल्मों में काम करना शुरू किया तो दिलीप कुमार बन गए. 

मुंबई में उनकी प्रतिभा को पहचाना देविका रानी ने जो उस समय के टॉप अभिनेत्री थी. दिलीप कुमार की पहली फ़िल्म आई 1944 में-ज्वार भाटा लेकिन ज़्यादा चल नहीं पाई. पर अगले क़रीब दो दशकों तक दिलीप कुमार हिंदी फ़िल्मों पर छाए रहे. आइए नज़र डालते हैं उनके फ़िल्मी सफ़र पर एक आलेख-वंदना 

जुगनू 

दिलीप कुमार को फ़िल्मों में पहचान मिली 1947 में आई फ़िल्म जुगनू से. ये उनकी पहली हिट फ़िल्म थी. दिलीप कुमार के साथ थीं नूरजहाँ और शशि कला. 

इसमें मशहूर गायक मोहम्मद रफ़ी ने भी छोटा सा रोल किया था. फ़िल्म का निर्देशन किया था शौकत हुसैन रिज़वी ने. फ़िल्म का गाना 'यहाँ बदला वफ़ा का बेवफ़ाई के सिवा क्या है' काफ़ी लोकप्रिय हुआ था.

शहीद 

वर्ष 1948 में दिलीप कुमार की फ़िल्म शहीद आई. शहीद में दिलीप कुमार की जोड़ी बनी कामिनी कौशल के साथ. इसमें उन्होंने एक स्वतंत्रता सेनानी की भूमिका निभाई. अभिनय की दुनिया में नए नवेले दिलीप कुमार के काम को इस फ़िल्म में काफ़ी सराहा गया. 

फ़िल्म बनाई थी रमेश सहगल ने और संगीत दिया था ग़ुलाम हैदर ने. 



मेला 

वर्ष 1948 में फ़िल्म शहीद के बाद दिलीप कुमार ने मेला में एक बार फिर अपनी अभिनय क्षमता दिखाई. मेला में लोगों ने दिलीप कुमार को नरगिस के साथ फ़िल्मी पर्दे पर देखा. साथ में थे जीवन और रूपकमल. 

मेला का निर्देशन किया था एसयू सन्नी ने और संगीत का जादू बिखेरा था नौशाद ने. मेला और शहीद की सफलता ने दिलीप कुमार को स्थापित करने में काफ़ी मदद की.



अंदाज़ 

दिलीप कुमार के करियर में एक अहम फ़िल्म है अंदाज़. ये फ़िल्म हर मायने में ख़ास थी. अंदाज़ का निर्देशन किया था महबूब खान ने. फ़िल्म में दिलीप कुमार और राज कपूर एक साथ नज़र आए और ये आख़िरी मौका था जब दोनों ने साथ काम किया. बाद में दिलीप कुमार और राज कपूर दोनों ने सफलता की बुंलदियों को छुआ. 

अंदाज़ की नायिका थीं नरगिस. जब ये फ़िल्म रिलीज़ हुई थी तो इसने रिकॉर्डतोड़ कमाई की थी. इसमें संगीत नौशाद का था. 

पचास का दशक 

पचास के दशक में दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद का बोलबाला रहा. दिलीप कुमार ने बाबुल, दीदार, आन, फ़ुटपाथ, देवदास, यहूदी और आज़ाद समेत कई बेहतरीन फ़िल्में दीं. उन्होंने अपने समय की सारी टॉप हीरोइनों के साथ काम किया- मीना कुमारी, नरगिस, निम्मी और वैजयंती माला. 

वर्ष 1952 में आई फ़िल्म आन ख़ास तौर पर चर्चित रही. महबूब खान के निर्देशन में बनी आन में दिलीप कुमार और निम्मी थीं. साथ ही नादिरा ने पहली बार फ़िल्मी दुनिया में क़दम रखा.

देवदास 

ट्रेजेडी किंग की संज्ञा पा चुके दिलीप कुमार ने 1955 में काम किया फ़िल्म देवदास में. ये फ़िल्म उनके करियर में मील का पत्थर साबित हुई. 

इसमें चंद्रमुखी बनी थी वैजयंतीमाला और सुचित्रा सेन ने पारो का रोल निभाया था. जबकि मोतीलाल चुन्नी बाबू की भूमिका में थे. देवदास की गिनती निर्देशक बिमल रॉय की बेहतरीन फ़िल्मों में होती है. 

नया दौर 

पचास के दशक का अंत आते-आते दिलीप कुमार का करियर अपने चरम पर पहुंचने लगा था. नया दौर, यहूदी, मधुमती, गंगा जमुना और कोहिनूर जैसी फ़िल्में इसकी मिसाल हैं. मधुमती में दिलीप कुमार ने एक बार फिर बिमल रॉय और वैजयंतीमाला की टीम के साथ काम किया. पुनर्जन्म के थीम पर बनी मधुमती लोगों को ख़ूब भाई और साथ ही भाया इसका संगीत भी. वर्ष 1957 में आई दिलीप कुमार की फ़िल्म नया दौर. ये एक सामाजिक दस्तावेज़ की तरह है जो उस समय के दौर को बखूबी दर्शाती है।

मुग़ल-ए-आज़म 

लगातार सफलता की ओर बढ़ रहा दिलीप कुमार का करियर फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म के साथ मानो शिखर पर पहुँच गया. 

फ़िल्म को बनने में करीब दस बरस का अरसा गुज़र गया लेकिन जब ये रिलीज़ हुई तो हर तरफ़ इसी की धूम थी. मुधबाला की ख़ूबसूरती, दिलीप कुमार की अदाकारी, नौशाद का दिलकश संगीत...फ़िल्म का हर पहलू बेहतरीन था. बाद में इसका रंगीन वर्ज़न भी रिलीज़ किया गया. 

राम और श्याम 

कई फ़िल्मों में संजीदा रोल करने के बाद राम और श्याम में दिलीप कुमार ने कॉमेडी में भी अपने जौहर दिखाए. 1967 में बनी इस फ़िल्म का निर्देशन किया था तपि चाणक्या ने. ये जुड़वा भाइयों की कहानी है. 

फ़िल्म की दो हीरोइनें थीं वहीदा रहमान और मुमताज़. 

गोपी 

वर्ष 1970 में फ़िल्म गोपी में दिलीप कुमार ने काम किया सायरा बानो के साथ जो उनकी पत्नी भी हैं. 70 का दशक आते-आते दिलीप कुमार का करियर कुछ ढलान पर जाने लगा. 

राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेताओं के आने के बाद उन्होंने फ़िल्में करना भी कुछ कम कर दिया. 1976 में आई बैराग के बाद वे कुछ सालों तक फ़िल्मों से दूर ही रहे. 
अस्सी का दशक 

अस्सी के दशक में दिलीप कुमार एक बार फिर फ़िल्मों में वापस आए- इस बार चरित्र किरदारों में. 1981 में आई फ़िल्म क्रांति में उनकी अहम भूमिका थी और ये वर्ष की सफलतम फ़िल्मों में से एक साबित हुई. 

क्रांति में मनोज कुमार, शशि कपूर, हेमा मालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा, परवीन बाबी और सारिका ने भी काम किया था. 

इसके बाद दिलीप कुमार ने विधाता, शक्ति, मज़दूर, और मशाल जैसी फ़िल्में की.

कर्मा 

सुभाष घई के निर्देशन में आई कर्मा में दिलीप कुमार के काम को काफ़ी सराहा गया. विधाता के बाद दिलीप कुमार और सुभाष घई की ये फ़िल्म एक बार सफल साबित हुई. 

कर्मा में दिलीप कुमार के साथ थीं नूतन. 50 और 60 के दशक में दोनों अपने चरम पर थे पर एक साथ काम करने का मौका अस्सी के दशक में आई कर्मा से ही मिला. कर्मा में अनिल कपूर, जैकी श्रॉफ़, नसीरुदान शाह, श्रीदेवी, पूनम ढिल्लों और अनुपम खेर ने काम किया था.

सौदागर 

वर्ष 1991 में निर्देशक सुभाष घई ने वो कर दिखाया जो बरसों में नहीं हो पाया था-उन्होंने पुराने ज़माने के दो दिग्गज कलाकारों दिलीप कुमार और राज कुमार को दोबारा एक साथ फ़िल्मी पर्दे पर उतारा फ़िल्म सौदागर में. 

फ़िल्म सुपर-डूपर हिट साबित हुई. दिलीप कुमार और राज कुमार ने इससे पहले फ़िल्म पैग़ाम में एक साथ काम किया था.

दादा साहेब फाल्के पुरस्कार 

नब्बे के दशक के बाद से दिलीप कुमार ज़्यादातर फ़िल्मों से दूर ही रहे हैं. 1998 में रेखा के साथ आई क़िला के बाद वे फ़िल्मों में नज़र नहीं आए हैं. अपने फ़िल्मी करियर में दिलीप कुमार ने कई पुरस्कार जीते. 

उन्होंने आठ बार फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड जीता है जिसमें दाग़, आज़ाद, देवदास, नया दौर, कोहिनूर, लीडर, राम और श्याम जैसी फ़िल्में शामिल है. 1994 में उन्हें फ़िल्मों के लिए सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

 

2 comments:

Alpana Verma said...

bahut hi informative lekh hai.
kafi mehnat ki hai aap ne --dhnywaad

Ajaatshatru said...

Dilip kumar sahab abhinaya ke pratisthan kahlaye jaa sakte hain. apne lambe aur vividhtapurn abhinaya yatra mein, unke dwara kee gayee filmein apne aap mein na keval film ke chaatron ke liye gahan adhyayan ka vishaye hain, balki, aam logon ke liye bhi manoranjan ka aisa bhandaar hai, jo ki keval aapka manoranjan hi nahi karta, varan kuch sochne par baadhya avashya karta hai. Chahe woh haasya vyangya se paripurn film Ram aur Shyam ho ya maarmik Ganga Jamuna, unki har film darshakon se samvaad jod paane mein saphal rahi hai. Is jaankaari se paripoorn lekh ke liye, aapka dhanyawaad